ये क्या हो रहा है मामा जी! आठ माह में 15 हजार से ज्यादा मासूम बच्चों की मौत

भोपाल। मामाजी आप तो संवेदनशील मुख्यमंत्री माने जाते हैं, और बच्चों के प्रति तो हमेशा ही स्नेह रखते हैं। यही वजह है कि प्रदेश में आप मामा के नाम से जाने जाते हैं। परंतु ये क्या ! पिछले आठ महीने में प्रदेश में 15 हजार से ज्यादा मासूमों की मौत हो गई। प्रदेश के शहडोल जिला अस्पताल में हुई मासूमों की मौत के बाद प्रदेश भर में 1 अप्रैल से 4 दिसंबर तक हुई नवजातों की मौत के आंकड़े सामने आए हैं। इस दौरान शहडोल जिला अस्पताल में 519 और शहडोल संभाग में 1102 मासूमों की मौत हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से करीब 70 फीसदी बच्चों की मौत अस्पताल में हुई है।



इनमें से ज्यादातर बच्चों की मौत की वजह वजन कम होना, निमोनिया, दिमागी संक्रमण, जन्म के समय रो नहीं पाने की वजह से हुई है। रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि नवजातों की बीमारी को समय पर पकड़ नहीं पाने की वजह से उनकी मौत हो गई। इनमें से 68.9 फीसदी बच्चों की मौत सही समय पर इलाज नहीं मिलने की वजह से हुई है।
खराब सिस्टम और सुविधाओं की कमी भी जिम्मेदार: स्वास्थ्य को लेकर सिस्टम में इतनी खामियां हैं कि चाहते हुए भी कोई इन से पार नहीं पा सकता। वहीं इलाज के लिए सुविधाओं की बात की जाए तो सर्वत्र हीलाहवाली का माहौल बना हुआ है। अगर समय पर इन बच्चों को मेडिकल कॉलेज या सुविधाओं वाले अस्पतालों में भेज दिया जाता, तो इन बच्चों को बचाया जा सकता था। आंकड़ों के मुताबिक हर साल 30 फीसदी से ज्यादा नवजातों की मौत समय पर इलाज नहीं मिल पाने की वजह से हो रही है। शहडोल जिला अस्पताल में हुई मौतों के बाद सरकार अस्पताल में सुविधाएं बढ़ाने की बात कर रही है। स्वास्थ्य मंत्री प्रभुराम चौधरी ने कहा है कि शहडोल जिला अस्पताल में 20 बेड का एक और एसएनसीयू वार्ड बनाया जाएगा।


राजनेता, अधिकारी और माफिया मिलकर करते हैं खेल
ऐसा नहीं कि स्वास्थ्य विभाग का बजट कोई कम है। भारी भरकम मिलने वाले इस बजट से राजनेता, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और महिला बाल विकास में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों का कुपोषण ठीक होता है। यह सबका पोषण माफिया के दबाव में चलता है। प्रदेश में सरकार और प्रशासन पर कुपोषण माफिया इतना हावी है कि वह कई सरकारों को प्रभावित करता है। कुपोषण को लेकर इससे पूर्व में मध्यप्रदेश विधानसभा में लंबी बहसें हो चुकी है, लेकिन ऐसे एक नहीं अनेकों दौर विधानसभा में और सड़क से लेकर सदन तक चले लेकिन उनका कोई नतीजा नहीं निकला। यही वजह है कि कुपोषण आज भी प्रदेश भर में पैर पसारता जा रहा है।
बच्चों के कुपोषण की चपेट में आने की खबरों में रहने तक ही राजनेताओं का पक्ष-विपक्ष पर आरोप लगाने का सिलसिला गरमाता है। उसके बाद जैसे ही यह मामला शांत हो जाता है तो राजनेता अपनी स्वार्थपूर्ति में लग जाते हैं और अधिकारी अपनी मनमानी में पूर्व की तरह लग जाते हैं। शहडोल में नवजात बच्चों की मौत के आंकड़े सामने आने के बाद शहडोल से लेकर राजधानी भोपाल और पूरे प्रदेश तक में राजनेताओं में जुबानी जंग जारी है। जहां तक शहडोल और रीवा संभाग की बात है तो कुपोषण ही नहीं इन्हें नन्हे-मुन्ने बच्चों को मौत के मुंह में धकेलने के लिए संभागों में लगे भारी भरकम उद्योग भी जिम्मेदार हैं जिनकी वजह से इन संभागों के सतना, रीवा, सीधी, शहडोल और सिंगरौली में पैदा होने वाला बाहर बच्चा अपने जन्म से ही तमाम बीमारियां लेकर पैदा होता है।


अनेकों योजनाएं चल रही हैं पर नतीजा क्या
यदि ये कहें कि आदिवासी क्षेत्र के लोग जागरुक नहीं है, इससे वे अपने बच्चों को देरी से अस्पताल लेकर आए इससे उनकी मौत हो गई। तो फिर सरकार द्वारा चलाई जा रही दर्जनों योजनाओं का क्या जिन पर ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता के लिए सरकार द्वारा मातृ स्वास्थ्य सेवा, शिशु स्वास्थ्य सेवा, जननी सुरक्षा योजना, जननी एक्सप्रेस, शिशु एवं बाल पोषण, राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम सहित अन्य अनेकों स्वास्थ्य योजनाएं चल रही है। फिर भी ग्रामीण अंचलों तक स्वास्थ्य की पहुंच नहीं बन पाई है। यही वजह है कि इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की मौत हो रही है।


-From-राजीव चतुर्वेदी/बिच्छू डॉट कॉम